जम्भाष्ट्क

|| जम्भाष्ट्क ||

ओउम मुखे चारू शोभं महामन्द हास्यं | करे जाप मालं , गलेशीर्षचैलम ||

महागैर रक्तं , शिरस्थान जूटं | परब्रह्म रूपं भजे जम्भमीशम ||१||

स्थले चोपवेशं , वरे धूर वेष्ट | मुखे शब्द शास्त्रं , श्रुते: पार जातम | जनै वेर्ष्टमान सदा साधू वृन्दे | परमब्रह्म रूपं भजे जम्भमीशम ||२||

अदृश्योदरं दृष्टभूतं तथापि | सदैवाभि मन्त्र: महायोग सिद्वे: | करे चारू पात्रं महावृक्षफाल | परमब्रह्म रूपं भजे जम्भमीशम ||३||

स्वयं शेष रूपं ,स्वयं ब्रह्म रूपं | सदा निर्विकार , सदा मात्र देहम | महाकांति शोभं , जित षड गुणेश | परमब्रह्म रूपं भजे जम्भमीशम ||४||

गतं रोग-शोकं गतं द्वेष-राग ,गतं पाप पुण्य , गतंक्रोध कामम | गुणातीत विष्णु: निराकार रूपं | परमब्रह्म रूपं भजे जम्भमीशम ||५||

दयाज्ञान सिधुं , ध्रुव लोक बन्धुं | शुचि शीलवंत शुभालोकवंतम | कृतं पाप दूरं मनो वाक् दूरं , परमब्रह्म रूपं भजे जम्भमीशम ||६||

कृतानंद भक्तं , निवृताक्षैलब्धं | विनाक्षैप्रर्भुक्ति जनस्यातीहार्दम | मुख ख्यात बोधं , गतिं देहिना च | परमब्रह्म रूपं भजे जम्भमीशम ||७||

महायोगवैद्यं हंत पापिनां च | नृणामेकगम्यं जलानाभिवाब्धि | महादैत्य नाशं , सदा धर्म पालं परमब्रह्म रूपं भजे जम्भमीशम ||८||

अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा

“सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण”

अमृता देवी गुरू जांभोजी महाराज की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गयी, क्षण भर में उनकी गर्दन काटकर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर तीनों पुत्रियों पेड़ से लिपटी तो उनकी भी गर्दनें काटकर सिर धड़ से अलग कर दिये.